Tuesday, December 9, 2014

कुछ कविताएँ-३

सच 

जो दिख रहा है
वो सच नहीं है,
जो सुनाई  दे रहा है
वो सच नहीं है,
जो लग रहा है
वो सच नहीं है,
..मगर सच यही है


सियासत

ऐ सियासी लोगो  
न उलझाओ लोगो को बिन बात के मुद्दों में
न वो राम चाहते हैं 
न वो अल्लाह चाहते हैं
वो बहन बेटियों की हिफाज़त चाहते हैं,
उम्र की तारीकी से पहले 
जो कर दे इन्साफ वो अदालत चाहते है,
घर से बाहर जो निकले कोई
वापसी उसकी वो सही सलामत चाहते है, 
बरसों से ढो रहे हैं लोग न जाने क्या क्या 
अब इस बोझ में कुछ रियायत चाहते है,  
हो अमन हर तरफ यहाँ पर
अब न कोई शहादत चाहते है,
ऐसे वैसे लोग न हो संसद में
अब संसद में शराफत चाहते है,
बिन वादे के भी जो पूरी कर दे जरूरत
अहले-वतन चाहे अब ऐसी सियासत






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