Friday, October 31, 2014

कुछ कविताएँ-१



तुम न बदलोगे खुद अगर
जमाना तुम्हे बदल देगा,
ये न सोचना तुम 
जैसे हो वैसे ही रहोगे सदा

२ 
जो भूलना होता आसाँ,
ग़म होते मेहमाँ,
मकाँ मालिक नहीं 

३ 
कह रहे हैं सब यही 
कि उसने खुदकुशी की है
काश...
किसी को पीठ का खंज़र दिखाई दे

बचपन में हर गली
हमें खेलने बुलाती थी
अब ये आलम 
कि लोग पूछते है नए हो क्या?
 
 

Friday, October 17, 2014

कुछ दोहे-२



इसमें तो खोना पड़े, अपना सब अभिमान
मत समझो प्रेम को तुम, इतना भी आसान

धरती, सूरज, चाँद जब, सभी यहाँ गतिमान
फिर कैसे गति बिन यहाँ, रह पाए इंसान

खुद अपनी छवि देखकर, कब तक यूं इतराय
सोचे बस सजनी यही, कब साजन घर आय

चुपके से वो जान ले, मेरे मन की बात
मुझको लगे हैं अच्छा, बस उसका ही साथ

मौन में जो बज उठता, वो जीवन संगीत
कोलाहल में खो जाए,जीवन का हर गीत